अमर प्रेम
क्या खूब ये मेरी जिंदगानी हो जाए
गर तू मेरी लिखी कहानी हो जाए
ना रहे मैं ना रहे तू, बस हम दोनो
सागर- दरिया ना रहे, बस पानी हो जाएं
तुम मेरी पहचान बनो, और मैं तुम्हारी
आओ हम एक दूसरे की निशानी हो जाएं
हीर – रांझा और लैला- मजनू की तरह
हम भी लोगों की जबानी हो जाएं
मुक्कमल नहीं है कोई शक्स इस जहाँ में
यू चाहें एक दूजे को, खामियां बेमानी हो जाएं
जिस्मों की हद तक ही सीमित नहीं इश्क़
हम मिलें तो ऐसे मिलें, बस रूहानी हो जाएँ