अमर प्रेम- (सवैया)
जब था किशोर, मन उठता हिलोर खूब,
मैं भी कई बार दिनभर में संवरता …
घर से निकलता था, कालेज में पढ़ने को,
मन में मिलन की उमंग लिए फिरता ।।
रहता बेचैन रात भर नहीं आता चैन,
प्रियतम की प्रीत ख्वाब आँखों में था पलता…
करवटें बदलकर पढ़ूॅ खत बार-बार,
प्यार का खुमार भिनसार में भी चढ़ता ।।
सुबह-शाम दोपहर,आए नजर आठो पहर
पांऊ उसे कैसे ,तरकीब यही बुनता….
आती न करीब दोष देता था नसीब का,
दिल का अमीर, मैं गरीब लिए फिरता ।।
वह बनी थी आशा- विश्वास व निराशा मेरी
जीवन की राग -अनुराग मेरी कविता
रखता था व्रत पूजा पाठ उसे पाने को मै,
कामना को पूर्ण कमलनाथ सदा करता ।।
उर में अधीर पीर लोचन में भर नीर
वेदना विरह का फिर -फिर था सिसकता,
जैसे मानौ मन का मिलन विधि रचा नही,
जीवन का अंत है,बसन्त में था लगता ।।
पूर्ण हुई कामना ,मिली आ मनोभावना,
हर्षित अपार मन कूदता-उछलता।।
प्रेयशी थी किताब और ख्वाब मेरा जाॅब का था,
सीखता-सिखाता बाल-बाग अब रहता ।।
रचनाकार- कृष्ण कुमार मिश्र (शिक्षक)