अमत्ता घनाक्षरी
डमरू घनाक्षरी का ही एक रूप
दिनकर चमकत
नभ नव दमकत।
खग गण विचरत
स्वर मधुर करत।
झिरझिर झरझर
जलद बरस कर।
तड़ित चमक कर
पड़त जगत पर।
अब बहत पवन
महकत उपवन।
क्षिति पुलकित तन
मुदित सकल मन।
निज उर शुचि कर
सहज जग विचर।
बस रख प्रभु डर
सहज भजन कर।
कर प्रभु दरशन
रख हृदय मगन।
मत रख अनबन
विचलित मत बन।
सत पथ पर चल
मग न यह सरल।
कर न कपट छल
यह सब दलदल।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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