अभी सफर तय करना है खुद से ही लड़ना है ।
दंभ नहीं ये शुरूआत हैं।
अपने पे विश्वास है।
गुरु, माँ – बाँप भी अब तैयार ।
समय आ गया है स्त्री
अपने को मुक्त करें ।
इसके लिए अपने को रोजगार युक्त करें। _ डॉ . सीमा कुमारी
बिहार। स्वरचित मुक्तक 3/1/022
रात २ः २५ ।