अभी मरा नही हूँ मैं!
सुनो मेरी जान,मरा नही हूँ मैं,
साँसे चल रही है मेरी,
जिस्म में अभी जान बाक़ी है,
तुम बिन जीने से बस
मेरी रूह ही तो मरी हैं,
पर सुनो मेरी जान,मरा नही हूँ मैं ।
कल तुमको मैंने अपनी मोहब्बत का इज़हार किया था,
तुमने पलकें झुका मेरे इश्क़ का इकरार किया था,
साथ चलने की कसमें खा कर,
हमनें एक दूजे का हाथ थाम लिया था,
पर देखों तुम्हारे यूँ बेवज़ह चले जाने से,
नाराज़ नही हूँ मैं,
तुम्हारे दिए इस धोखे से,हैरान नही हूँ मैं,
सुनो मेरी जान,अभी जिंदा हूँ,
मरा नही हूँ मैं ।
तुम्हारे आने के इंतज़ार में,
ख़ुद को समेटे बैठा हूँ,
मुझें पता है,
तुम अपने गुनाहों की माफ़ी नही माँगोगे,
इसलिए अभी से तुम्हे माफ़ किए बैठा हूँ,
सुनो मेरी जान,
मरा नही हूँ मैं ।
दीपक ‘पटेल’