” अभी बहुत कुछ , छूटा सा है ” !!
तेज़ भर रहा ,
वक़्त कुलांचें !
मन की पीड़ा ,
कौनहु बाँचें !
शुष्क अधर हैं ,
पलकें बोझिल !
पलते सपने ,
झिलमिल झिलमिल !
अपना साहिल –
रूठा सा है !!
जगी उम्मीदें ,
हरी भरी हैं !
मिली जो राहें ,
वे संकरी है !
बिदकता सूरज ,
वहां न चमके !
हमें है लड़ना ,
अपने दम पे !
अपना सपना –
टूटा सा है !!
मन ही मन में ,
गाँठ बाँध लें !
क्या करना है ,
अभी ठान लें !
दरक रहे हैं ,
पल पल रिश्ते !
हाथों से सब ,
यहाँ फिसलते !
रब भी लगता –
झूंठा सा है !!
गरल मिला है ,
यहाँ वहां से !
सुधा की बूँदें ,
अभी कहाँ हैं !
विषपायी बन ,
लड़ना बाकी !
दृग में बसी ,
मनोरम झांकी !
भाग्य बदलना –
रूठा सा है !!