अभी उम्र ही क्या है मेरी
अभी उम्र ही क्या है मेरी
शैशव गुजर यौवन की स्थिति में है
भावुक नैन नहीं है मेरे
अभी जिदंगी के पन्ने हंसते-हंसते भरना हैं
मुझे तो सीप की मोती बनना हैं
ख्वाब हमारे नाजुक नहीं हैं
सृष्टि के इस लोक में,
बस कुछ ही दिनों की बात है
शब्दों से शिल्प गढ़ना हैं
मुझे भी लगने लगा हैं कि
मुझे भी लेखक बनना हैं
न कोई जादू दिखाना है
न ही मंजिल पाना हैं
शब्दों को चुन-चुन कर,
कोई कवियों सा लिखना हैं
अर्तमन की शाखा से,
कोई महकाती गीत गुनगुना न हैं
अभी उम्र ही क्या है मेरी,
अभी मुझे बहूत कुछ कर जाना हैं.
स्वरचित
‘शेखर सागर’