“अभी ईमान जिंदा हैं “(मुक्तक)
“अभी ईमान जिंदा हैं ”
मुक्तक
समान्त -आन
पदान्त -जिंदा हैं
मात्रा संख्या -28
गर्दिशों के सायें में अब भी पहचान जिंदा हैं।
टुटी कुछ रीतियाँ लेकिन अब भी विधान जिंदा हैं।
कौन है वो जिसने तुम्हें यहाँ पर रोक रखा हैं।
उड़ो तुम पर फैलाकर अभी आसमान जिंदा हैं।
सन्नाटों के मंजर में अब भी तुफान जिंदा हैं।
टुटे है हौसले लेकिन अभी अरमान जिंदा हैं।
कौन कहता हैं दुनियाँ में कमी हैं भद्रजनों की।
अपमानों के भंवर में अभी सम्मान जिंदा हैं।
मंदिर में भजन मस्जिद में अभी अजान जिंदा हैं।
दिलों में हर किसी के अब भी इक मकान जिंदा हैं।
कौन कहता हैं यहाँ पर कमी है देशभक्तों की।
देश पर मिटने वाले करोड़ों जवान जिंदा हैं।
शैतानों की बस्ती में अब भी इंसान जिंदा हैं।
करे दिल से खातिर जो एेसे जजमान जिंदा हैं।
कौन कहता हैं दुनियाँ भरी है बेईमानों से।
जुल्म हजारों सहकर भी अभी ईमान जिंदा हैं।
स्वरचित
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “