अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
देखे सुखसार भरे पलछिन,
फिर कष्ट समेटे ऊसर दिन।
अपनों से घाव निशुल्क मिले-
उन घावों से उपजे दुर्दिन।
कुछ याद सुखद अवशेष नहीं ।
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
जब भूख दिखी मन हुआ व्यथित,
कुछ दिखे साधते अपना हित।
कुछ स्वार्थ साधते संबंधी –
देकर सब पीर गये अगणित ।
किञ्चित आशा अभ्रेष नहीं।
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
है झूठ दिखा महिमा- मण्डित ,
लयभंग सत्य बिल्कुल खण्डित।
शब्दों की हेराफेरी में-
सब धूर्त बनें ज्ञानी पण्डित।
अपकर्म की सीमा लेश नहीं।
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।
देखा क्रन्दन इन आँखों ने
मिथ्या वंदन इन आँखों ने
अवसरवादी विषधर लिपटे –
देखा चंदन इन आंखों ने।
है लगता अब कुछ शेष नहीं।
अभिव्यञ्जित तथ्य विशेष नहीं।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’