अभिव्यक्ति
“अभिव्यक्ति”
——————-
कभी-कभी
जब भी बनता हूँ !
तेरे एहसास का बिन्दु
तो एहसास मेरे !
छू जाते हैं !
तेरे अन्तर्मन को !
तब होती है !
गुफ्तगू !
इन एहसासों की
और उड़ने लगते हैं
उन्मुक्त होकर
स्नेह-आकाश में !
तेरा स्नेहिल-स्पर्श
रोमांचित करता है
मेरे हर पल को
मेरे इस जीवन को !
और जीता हूँ !
मैं बनकर
तेरी ही अभिव्यक्ति !!
—————————-
डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”