” अभिव्यक्ति “
” अभिव्यक्ति ”
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
==================
मित्रता के आमंत्रण पर हम शीघ्रता से इस यन्त्र माध्यम से हम जुड़ जाते हैं ! हम इठलाने लगते हैं और लोगों को बतलाते हैं , दिखलाते हैं और गर्व से सीना फुलाके कहते हैं “‘देखो हमारे मित्रों की संख्या …….हमने तो जग जीत लिया !'”
मित्रता के चार स्तंभों को नहीं भूलना चाहिए ! प्रथम -समान बिचार धारा ,द्वितीय-सहयोग की भावना ,तृतीय -संकट में साथ होना और चतुर्थ -गोपनीयता को बरक़रार रखना ! अब तो उपरोक्त स्थम्भों के ही बिना ही हमारी मित्रता टिकी हुई है !
समान विचारधारा की बात कौन कहे व्यक्तिगत विचार धाराओं की उपेक्षा करना मनो प्रतिष्ठा की बात हो गयी है !सहयोग की भावना , संकट के क्षणों में साथ खड़े होना और गोपनीयता की बातें.. इन यंत्रों के माध्यम से असंभव प्रतीत होती है !
फिर भी हमें गर्व होना ही चाहिए कि हम इन यंत्रों से पहले हम कूपमंडूक बने हुए थे ! अब हम विश्व से जुड़ गए हैं ! अपने विचारों और स्थानीय परिवेशों को जब तक अपने टाइम लाइन पर उजागर नहीं करेंगे तो हम आपको समझ कैसे पाएंगे ?
विचारों की अभिव्यक्ति आपका मौलिक अधिकार है ! पर शिष्टता के चोखट को लांघना कथमपि उचित नहीं माना जायेगा !
==========================================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका