“ अभिव्यक्ति क स्वतंत्रता केँ पूर्वाग्रसित सँ अलंकृत जुनि करू ”
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
==================================
आलोचना ,प्रशंसा ,टीका -टिप्पणी ,समालोचना ,व्यंग आ नौ रस क अभाव मे साहित्य सदैव अपूर्ण मानल गेल अछि ! इ कखनो कविता ,लेख वा कहानी क रूप ल लैत अछि ! सम्पूर्ण विधा केँ भिन्य -भिन्य दृष्टिकोण सँ लोक तकर आनंद उठबैत अछि ! समस्त लोक यदि मात्र एकटाबे राजनीति विचारधारा केँ अनुगामी रहितथि त एतैक विभिन्य राजनीति दलक पादुर्भाव नहि होइत !
मतविभिन्यता त हमरा लोकनि केँ अपनो परिवार सब मे व्याप्त अछि ! आ समाज मे सहो भरपूर भेटइत अछि ! राज्य ,देश आ अंतरराष्टीय परिदृश्य मे भी सहो देखबा मे भेटइत अछि ! की एहि मतांतर केँ “ पूर्वाग्रसित “ क संज्ञा देल जायत ?…… नहि ! इ उचित कथमपि नहि भ सकैत अछि !
शालीनता ,शिष्टाचार आ माधुर्यता केँ आरि पर चलि केँ हम अपन विभिन्य विधा क प्रयोग करैत छी जे इ हमर संवैधानिक अधिकार अछि ! लेखक ,कवि ,समालोचक ,व्यंगकार ,चित्रकार ,संपादक आ कलाकार क अभिव्यक्ति हृदय सँ निकलैत अछि !
इ कोनो रूप धारण क सकैत अछि – आलोचना ,प्रशंसा ,टीका -टिप्पणी ,समालोचना ,व्यंग आ नौ रस क समिश्रण सँ एकटा अद्भुत गप्प निकलि केँ सोझा अबैत अछि ! इ सम्पूर्ण विधा सकारात्मक बुझल जाइत अछि ! पक्ष क प्रतिक्रिया सहो सकारात्मक मानल जायत आ विपक्ष क प्रतिक्रिया सहो हमरा लोकनि सकारात्मक बुझब पड़त !
गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर कहने छथि ,-
” WHERE THE MIND IS WITHOUT FEAR AND THE HEAD IS HEAD HIGH “!
इएह “पूर्वाग्रसित” संज्ञा केँ अभियोग मे 66 A संशोधित 2000 IT ACT क तहद करीब 1300 लोक अखनो धरि कलकोठारी मे अपन दिन बीता रहल छथि ! जखन श्रेया सिंघल क केस क बाद 2015 मे माननीय सर्वोच्च न्यायालय 66 A केँ पूर्णतः निरस्त क देलनि !
सर्वोच्च न्यायालय इ निर्देश देलनि कि आलोचना ,प्रशंसा ,टीका -टिप्पणी ,समालोचना ,व्यंग आ नौ रस क प्रयोग शालीनता आ शिष्टाचार सँ केनाय प्रजातन्त्र क रीढ़ मानल जायत ! सत्ता मे बैसल लोक केँ हमरालोकनि केँ आईना देखेबा क अछि आ विपक्ष क कार्यशैली पर अंकुश लगेनाइ अनिवार्य अछि ! एहि परिपेक्ष मे हमरालोकनि केँ भूलिओ केँ “ पूर्वाग्रसित “ कहि किनको आहत नहि करबाक चाहि !
======================
डॉ लक्ष्मण झा” परिमल”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस. पी .कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
11.12.2022