अभिलाषा
अभिलाषा
मात-पिता की अभिलाषाओं की,
सुंदर प्रतिमूर्ति बनूं।
परिजन में जितने रिश्ते हैं,
सब रिश्तो का सेतु बनूं।
जिस घर के आंगन में सुंदर,
होवे तुलसी का बिरवा।
और चिड़ियों की प्यास बुझाने,
भरा लटकता हो करवा।
मात-पिता शुचि संस्कार दें ,
और शिक्षा का दें वरदान।
ऐसे ही घर के आंगन का,
रघुवर मुझे मिले अवदान।
घर से निकल कार्य करना हो,
हो इसका अधिकार मुझे।
अपने सपनों में रंग भरने,
मिले प्रेरणा प्यार मुझे।
वर चुनने की बात अगर हो,
मेरा मत जाना जाए।
यदि होवे इनकार हमारा,
उसको भी माना जाए।
स्वस्थ, शिष्ट, नैतिक मूल्यों से,
हो परिपूर्ण मेरा भरतार।
निष्ठा और विश्वास भरा हो,
नित जीवन में बरसे प्यार।
निज कर्तव्यों के पालन में,
होवे मुझसे चूक नहीं।
कर्तव्यों और अधिकारों हित,
मुखर रहूं मैं मूक नहीं।
अपनी संस्कृति संस्कारों का,
दूं अगली पीढ़ी को ज्ञान।
नत होना ईश्वर के आगे,
कदम बढ़ा सीखें विज्ञान।
करुणा प्रेम दया ममता का,
मन से टूटे ना नाता।
परहित का भी ध्यान रहे,
बस इतना लिख देना धाता।
इंदु पाराशर
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