अभिलाषा
1
मन के अंदर ही बसा, अभिलाषा का गाँव
जहाँ दुखों की धूप है, और सुखों की छाँव
इच्छाओं का ‘अर्चना ,कभी न होता अंत
भागा भागा मन फिरे,मिले न फिर भी ठाँव
2
अभिलाषाएं ही जीवन में, खुशियाँ लेकर आती हैं
ये हम को जीवन जीने का, मकसद देकर जाती हैं
लेकिन बहुत जरूरी होता, मन का संतोषी होना
वरना इक दिन हावी होकर, हमको बहुत सताती हैं
डॉ अर्चना गुप्ता