अभिलाषा
अब अश्वेत केश नहीं
नैन तीव्र नहीं आयु
भी ज्यादा रही नहीं
आयु अद्रशतक से
अतुलित हो गयी
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
चलो चलें संगी अब भ्रमण को
पांचों ताल को देख आये
ताल जाल का भ्रम सदा
हृदय ताल में ना रह जाये
देख हमेशा रोका मुझको
कुछ कार्य पुर्ण अभी हुये नहीं
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
बचपन का संग सी़ंचा सपना
आयु धरा पर पाला है
संग संग मेरे तरु हुआ
अब प्रलंबो का सहारा है
स्पंदन है हृदय गुफा मे
हृदय गति अभी रुकी नहीं
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
अभी अमावस हुई नहीं
आंखों में मंद उजियारा है
नैन नगण्य ना हो जाये
सांझ काल का तारा हूँ
घूम रहा हूँ जीवन थुरि पर
स्वेच्छा पूरी हुईं नहीं
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
अब निवृत्त हूँ हर कर्म से
वृध्द वृक्ष सी दशा मेरी
तीव्र वायु झोंकै से
मिट्टी में मिल जाऊ ना कहीं
मोह करु का जीवन का
कल का भी तो पता नहीं
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
अब अश्वेत केश नहीं
नैन तीव्र नहीं आयु
भी ज्यादा रही नहीं
आयु अर्दशतक से
अतुलित हो गयी
अभिलाषा पूरी हुईं नहीं
दैबेन्द्र रावत