अभिलाषा
सारी रात बैंच पर बैठे बैठे प्रवीन प्रतीक्षा करता रहा । सुबह 5:00 बजे हल्की सी झपकि आई ही थी कि तब तक कानों में आवाज पड़ी – ” बधाई हो लड़की हुई है ” । एकाएक लटकी गर्दन डॉक्टर की तरफ घूमी और देखते ही देखते रह गया । महीनों भर की प्रतीक्षा एकदम चेहरे से उतर गई। यह क्या इस बार भी लड़की हुई है ? सोचा था एक बार लड़का होगा लेकिन दूसरी भी लड़की हुई है । खुद की किस्मत को कोसता हुआ बेंच में बैठे-बैठे सोचता रहा। उधर प्रवीन के पिताजी खुश थे । उन्हें बिल्कुल भी फर्क नहीं था कि लड़का हो या लड़की बस इस अवस्था में समय व्यतीत करने के लिए एक साथी और हो गया । दादा अपनी नवजात पोती को देखने को आतुर थे। अचानक नजर प्रवीन की तरफ पड़ी और बोले- ” बेटा बधाई हो लक्ष्मी आई है ” प्रवीन कुछ नहीं बोला । पिताजी समझ गए । प्रवीन को बहुत समझाया। लेकिन बेटा और बेटी में जो अंतर उसके मन में चल रहे थे वह बहुत गहरे थे । जिस कारण वह पिता की बात नहीं समझ पा रहा था। इतने में घर से मां का भी फोन आ गया । खुद बात नही की । फोन पिता को पकड़ा कर दूर खड़ा हो गया । पिता ने मुस्कुराते हुए खबर दी कि पोती हुई है। मां ने भी निराश होकर फोन काट दिया । पिता भी सोचने लगे कि इनकी कुपोषित बुद्धि से पता नहीं इस प्रकार की भावना कब दूर होगी ।
मन मार कर कुछ देर बाद प्रवीन अपने पिता के साथ अंदर कमरे में गया जहां पत्नी के बगल में नन्ही सी कन्या लेटी हुई थी। दादा अपनी पोती के स्वरूप को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। कुछ देर प्रवीन भी एकटक अपनी बेटी को देखते रहा। पत्नी से नजर नहीं मिला पा रहा था । पत्नी भी मुख पर हल्की सी मुस्कान लिए प्रवीन की तरफ देख रही थी वह समझ गई थी कि पति के मन में क्या चल रहा है? परंतु कुछ नहीं बोली । दादा ने पोती को गोदी में लेकर खूब लाड प्यार किया और प्रवीन की तरफ से देखकर बेटी को गोद मे पकड़ने का इशारा किया । गोदी में पकड़ते ही बेटी का स्वरूप देखकर प्रवीन सब कुछ भूल गया था, लेकिन मन में पाले विकार उसे बार बार परेशान कर रहे थे । बेटी को अपने पिता के पास देकर प्रवीन कमरे से बाहर आ गया । उसकी आशा निराशा में बदल गई थी ।
समाज के ताने , रिश्तेदारों के टोका टाकी, मन ही मन आत्म ग्लानि हो रही थी । पड़ोस में मिश्रा जी के दोनों बेटे हैं । क्या क्या नहीं सोचा था , सब पानी फिर गया । खैर जो हो गया सो हो गया मन को बहला-फुसलाकर झूठी हंसी लेकर पुनः अंदर कमरे में गया । थोड़ी देर बाद बाहर दुकान से मिठाई लेकर अस्पताल में सभी स्टाफ में मिठाई बांटी । वहीं स्टाफ में महिला डॉक्टर को देखकर मन ही मन सोचने लगा यह भी तो बेटी रही होगी , आज इतने बड़े अस्पताल में डॉक्टर है । इसी तरह अपनी दोनो बेटियों का अच्छी तरह लालन पालन कर इनकी तरह डॉक्टर बनाऊंगा ।
मित्रों वर्षों से हमारे समाज में बेटी होना अभिशाप माना जाता है। आखिर क्यों? बेटी नहीं होगी तो भविष्य में जिस बेटे की आस लगाए हो वह कैसे प्राप्त होगा ? संसार में पुरुष ही पुरुष रहेंगे तो बिन स्त्री के पुरुष का अस्तित्व क्या है? इस प्रकार के कुपित विचारों को अपने दिमाग से निकाल दें कि बेटा हुआ है या बेटी। दोनों में समानता रखें। भेदभाव ना करें। बेटी को जन्म आपने दिया है। वह अपनी इच्छानुसार आपके घर में नहीं जन्मी।
अहो! भाग्य जिनके घर में लक्ष्मी जन्म लेती है …..
©®- अमित नैथानी ‘मिट्ठू’