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19 Aug 2020 · 1 min read

“अभिलाषा”

हो सपनों का आशिया, हो मीठी उड़ान।
उमंग अनोखी, जो दे मेरी पहचान।
काश कहने पर रूकती, हवा और झुकता आशमा।
फूलों से खेलती, भवरे से बोलती।
सीख जाती पंछियों की भाषा।
क्या पूरी होगी मेरी अभिलाषा।
दुनिया का चित्र बनाती ,अपने रंगों से इसे सजाती।
तारों के आंचल हो, हों फूलों की झूले।
चांद रात को लोरी सुनाए, सूरज आकर सुबह जगाए ।
बूंदों के संग फूल बरसते, खुशियों के संग एहसास छलकते।
मीठे से ख़्वाब सभी के पूरे हो जाते,ना मिलती किसी को निराशा ।क्या पूरी होगी मेरी अभिलाषा।
सब उल्टा पुल्टा हो जाता।
दुनिया वक्त का नहीं, वक्त दुनिया का गुलाम कहलाता।
आंसू ना बहते ,ना दुख का सागर होता।
ये दिन नही, ये रात भी मेरी होती।
दुख में ना, ये दुनिया छुपके रोती।
आचरण पोधो जैसा हो जाता।
क्या पूरी होगी मेरी अभिलाषा।
ना दरिया शोर मचाता, ना मन घबराता।
पर यह एहसास ही तो है ,हमको कुछ सिखलाता।
छोटी सी दुनिया हो ,ना दुख का एहसास होता।
पर दुख नहीं तो, जीवन क्या कहलाता।
तिनका तिनका जोड़, घर बन जाता।
होती पूरी सभी की आशा।
पूरी होगी मेरी अभिलाषा।

Language: Hindi
10 Likes · 6 Comments · 550 Views
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