अभिमान
हम नादानी में कर बैठते हैं , खुद पर अभिमान ।लेकिन यह जिंदगी पल भर में तोड़ देती हैं हमारा गुमान।
कर लेते हैं हम खुद पर इतना मान ।
कि अपने आप को समझने लगते हैं ,भगवान से भी महान।
भूल जाते हैं हम यह की हमें ,जीवन देने वाला वह भगवान हैं ।
फिर भी हमें इस संसार को न छोड़कर जाने का अरमान है।
खो जाते हैं हमें खुद में इतना ,की भूल जाते हैं अपनों का हर सपना ।
क्यों हो जाता है इंसान को इतना अहंकार, कि उसे रोशनी में भी नजर आता है अंधकार।
अभिमान की जगह लाओ,खुद मे स्वाभिमान ।ताकि ये जिंदगी हो तुम्हारी महान।