— अभिमानी –
करता है, रोज करता है
न जाने किस बात का
ओ इंसान तू
बता जरा
क्यूँ अभिमान
करता है
नंगे बदन चल के आया
जो भी पाया यही से पाया
जो खोया यहीं का खोया
फिर क्यूँ है हैरान रे
क्यूँ करता तू
अभिमान रे
मगन रह अपने काम में
हर बात पर चिंता छोड़ दे
जो लिखा विधाता ने
उस को कौन करता टाल रे
मत कर तू अभीमान रे
न यह जमीन तेरी
न तेरा कोई घर बाहर रे
मिटटी के खिलोने
मिटटी में ही जाएगा रोल रे
फिर किस बात पर
करता रे, अभीमान रे
अजीत कुमार तलवार
मेरठ