अभिमानी अदिती
अदिती को अपनी सुंदरता पर बहुत अभिमान था।
वह छरहरी कद-काठी की थी। गोरा रंग, गुलाबी गाल, बड़ी-बड़ी काली आँखें , गुलाब पंखुड़ी सी होंठ आकृति, सुनहरे लंबे घने केश और साथ ही बुद्धिमान भी। क्या नहीं था उसके पास पर एक अभिमानी वृत्ति होने से सब धूमिल लगता था। वह किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं करती थी।
खूबसूरत चेहरे वालों को ही वह अपना मित्र बनाती थी। जगन और उसका घर एक ही मोहल्ले में था। तो दोनों एक दूसरे को जानते ही थे। बचपन में साथ-साथ खेले थे। पर बड़े होने पर अदिती जगन से दूर रहने लगी थी।जगन का रंग दबा हुआ था और नैन नक्स से भी साधरण ही था। उसे अदिती से बचपन से ही बहुत लगाव था। पर उसे अदिती का स्वभाव पता था। इसलिए वह भी उससे बोलने की कोशिश नहीं करता था
अदिती के युवा होने पर उसके लिए रिश्तों की लाइन लग गई पर उसे कोई लड़का अपने योग्य नहीं लग रहा था।
एक दिन जगन ने अदिती के घर बहुत से लोगों को आते जाते देखा तो वह भी उसके घर पहुँच गया। पता चला कि बाजार में सड़क पर चलते हुए एक अनियंत्रित कार ने उसे कुचल दिया था।
वह उसे देखने अस्पताल गया । अदिती के चेहरे पर गहरी चोटें आई थीं। एक टाँग की हड्डियां चूर-चूर हो गई थी।अदिती बेहोश पड़ी थी।
कुछ महीनों में घाव भर गए पर चेहरे पर गहरे निशान छोड़ गये थे। एक कृत्रिम पैर भी लगाना पड़ा।
उसके माता-पिता इसी सोच में चिंंतित रहते थे कि अब बेटी का विवाह कैसे होगा।
एक दिन जगन अदिती के घर गया और अदिती के माता-पिता से उसका हाथ मागा । अदिती के माता – पिता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई सब कुछ जानते हुए भी उससे विवाह करने के लिए तैयार है।
अदिती के पापा बोले,- “बेटा क्या तुम सोच समझकर यह बात कह रहे हो?” जगन ने कहा,- “हाँ चाचाजी मैंने यह बात सोच समझकर ही कही है। मैं अदिती को बचपन से ही चाहता हूँ। ऐसी हालत में उसे किसी ऐरे-गेरे से विवाह नहीं करने दे सकता। मैं अदिती को पूरा सम्मान और प्यार दूँगा।
पर पहले आप अदिती से भी राय ले लीजिए।”
लेकिन अदिती ने सब सुन लिया था। अब उसकी सुंदरता खो चुकी थी। फिर भी जगन उससे विवाह करना चाहता है । मैं कितनी गलत थी जो सुंदरता को ही सबकुछ समझती थी । सुंदरता तो व्यक्ति विचारों में होती है। वह बैसाखी से चलकर जगन के पास आई और बोली , “जगन मैं तैयार हूँ ।” जगन ने अदिती को गले से लगा लिया। चारों की आँखें खुशी के आँसुओं से नम थीं।
लेखिका- गोदाम्बरी नेगी