अभिनंदन
धरा की गोद मे बसा कैसे
वीरो की गाथा का डगर है
शौर्य वीर के सीने में अभी
भी आंतकियो से निडर है ।
वो दुष्ट, वीर की आंखों से नजर
मिलाकर भी कैसे बात उगाले ,
भारत माता की कसम अपनी
रणनीति भी नही सामने उछाले ।
भले मार खाकर भी अपना शीश
दुष्टों के सामने न कभी झुकाया
उस भारती माँ के खातिर माठी
का लाल रुग्ण का चन्दन लगाया।
धीरे धीरे बयार आकर सामने
कान में धीरज रखने की बोली ,
घबराना मत ,माँ के वीर सपूत
समझ बंधी है माँ की यह रोली ।
वायु सेना की बनी यह शान
पुकारे तुझे ही पूरा हिंदुस्तान ,
मस्तक पर सजा रहा चन्दन
लगते हो वीर केसरीनंदन
जल्दी लौट आया अभिनंदन ।
✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वर रचित मौलिक रचना
मो.9165996865