“ अभिनंदन ,आभार और प्रणाम शालीनता का परिचायक “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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विनम्रता ,शालीनता ,माधुर्यता और शिष्टाचार के अस्त्रों से सुसज्जित मनुष्य तभी हो सकता है जब अपने व्यक्तित्व की मलिनता को परित्याग करके अभिनंदन ,आभार ,स्नेह और प्रणाम की प्रक्रियाओं को अपने जीवन में अपनाता है ! इन प्रक्रियाओं के सफल प्रयोग से मनुष्य की गरिमा बढ़ जाती है ! अपनों से बड़े को हम प्रणाम करते हैं ! यह एक सम्मान और समर्पण की प्रक्रिया हैं जो हरेक परिवार ,समाज ,संगठन और शिक्षण संस्थानों में युग -युग चली आ रही है !
इसकी शिक्षा हमें प्रथम प्रारम्भिक पाठशाला अपने घरों में ही मिलने लगती है ! बाल्यकाल में जब हमारा ज्ञान -चक्षु प्रस्फुटित हो उठता है तो हमारी शिक्षा का प्रथम अध्याय प्रारंभ हो जाता है !
“ बड़ों को पैर छूकर प्रणाम करना “
“ अपने घर के बड़ों को प्रणाम करना “
“ अपने इष्ट देवता को नमन करना “ इत्यादि ..इत्यादि !
यह प्रक्रिया सिर्फ परिवार तक ही सीमित नहीं रहती है ,अपितु यह सम्पूर्ण समाज की रीति बन गई है ! विश्व के परिधियों में आने वाले जाति ,वर्ण ,समुदाय और समाज इन प्रक्रियाओं से कभी अछूते ना रहे ! हम लाख ऊँच्च पदों पर आसीन क्यों ना हो जाएं पर हम अपने परिवार और अपने गाँव के श्रेष्ट लोगों को प्रणाम करना नहीं भूलते !
हमें सलूट करने का प्रशिक्षण एन 0 सी 0 सी में दिया जाता है ! और बृहद रूप में इसे आर्मी ,नैवी और एयर फोर्स में हम देख सकते हैं ! सलूट अपने से ऊँच्च अधिकारी को हमेशा दिया जाता है ! इसकी अवहेलना दंडनीय अपराध है ! अभिवादन के स्वर यहाँ भी गूँजा करते हैं !
गुरुओं को प्रणाम करने की प्रथा सदियों से चली आ रही थी पर अब कुछ बदला- बदला नजर आने लगा है ! अशिष्टता का रोग समाज में फैलता जा रहा है ! परिवार ,समाज और शिक्षण संस्थान में इन पद्धतियों का अधपतन हो गया है ! परंतु आर्मी ,नैवी और एयर फोर्स की परंपरा में अभिवादन का महत्व ज्यों का त्यों है ! और एक महत्वपूर्ण बात को हम कभी नहीं नजर अंदाज कर सकते हैं कि आज भी आदिवासी समाज में प्रणाम ,अभिनंदन ,आभार और स्नेह का स्थान अक्षुण्ण बना हुआ है !
सभ्यता के ऊँच्चतम शिखर पर आरूढ़ होकर हमारी शिष्टाचार की नींव ही हिलने लगी है ! प्रणाम ,अभिनंदन ,आभार और स्नेह को हम बोझ मानने लगे हैं ! बहुत कम ही लोग हैं जो इन शब्दों का प्रयोग फेसबुक के रंगमंच पर करते हैं ! प्रणाम के फोटो को चिपका देंगे ! अपने से बड़ों को अँगूठा दिखा देंगे ! सामने मिलते ही अपनी राहें बदल लेंगे ! बड़े ,बुजुर्ग को देखके अपने मोबाईल के बटनों को दबाना प्रारंभ कर देंगे ताकि यूँ आभास होने लगे कि हमने देखा ही नहीं !
अभी भी हम संभल सकते हैं ! प्रेम का संचार कर सकते हैं ! यदि हम यथोचित सम्मान ,स्नेह ,प्रणाम और अभिवादन के मंत्रों को दुहरायें तो शिष्टाचार की नींव को और सुदृढ़ कर सकते हैं !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका ,झारखंड
भारत
26. 11. 2021.