अभागे
पृथ्वी घर हम सबका,
शायद,
क्या सच में?
हम सबका घर,
पर कुछ थे,
जो थे आभगे,
जो शायद हम
जैसे नही थे,
मनुष्य नही थे,
ढोर की तरह,
विचरते यहाँ-वहाँ,
मनुष्य होने के अधिकारों
से वंचित,
ढकेले गए,
जहाँ-तहाँ
रहे कृपाहीन
यह कृपन,
होना न होना
इनका,
आया नही किसी
खाते में,
पृथ्वी पर यह कहीं,
भी रहे,
कूड़ेदान ही,
समझे गए,
रहे घर में,
पर रहे,बाहर,
अपनी जगह,
को तरसते,
यह लोग,
यह अभागे लोग,
सहेजे जाने की,
सभी योजनाओं
से दूर,
यह मज़दूर,
अभागे मज़दूर