‘अभागा वृक्ष’
‘अभागा वृक्ष’
क्या वृक्ष भी अभागे होते हैं? मनुष्य अपने कर्मों का बुरा फल हमेशा दूसरों पर क्यों थोपता है। आखिर हर वनस्पति ईश्वर ने बनाई है। फिर मनुष्य कौन होता है इसका निर्णय करनेवाला कि क्या उगना चाहिए क्या नहीं। एक हरेभरे वृक्ष को नकारात्मक बताकर अपने स्वार्थ के लिए उसे दुत्कारना बहुत ही दुखद है। मैं हार गई।उस वृक्ष को बचा न पाई नष्ट होने से।विशेषकर जब अपने ही उसे नष्ट करने की जिद पर उतर आए हों । लोगों से तो मैं बचाने की कोशिशें कर ही रही थी। आखिर वो चंपा का सुंदर पौधा उजड़ ही गया जिसे मैं प्यार से सींचती थी। काश मैं बचा पाती उसको! हे प्रभु क्षमा करना। मैं अपराधी हूँ उस पौधे की जो भी सजा मिले व्यक्तिगत रूप से मुझे ही देना क्योंकि मैंने उसे लगाने की भूल की और उसकी सुरक्षा न कर सकी ।न जाने कितनी बार तोड़ा मरोड़ा गया।जड़ से उखाड़ा गया।साखाएं छिन्न-भिन हो गई थी। मैं उसे फिर से जीवित करने की कोशिश करती रही पर कब तक ? बार-बार आक्रमण झेल रहा था निरीह शांत और अहिंसा वादी जो अपना बचाव तक नहीं करता वो किसी पर नकारात्मक प्रभाव कैसे डालेगा। भाग्य में यही था शायद । पेड़ भी अभागे होते हैं क्या? मन में ये प्रश्न उठता है बार-बार।
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