अभयदान
हे प्रभु ! तुम हो पिता हमारे ,
हम है तुम्हारी संतान ।
रखकर कृपा का हाथ शीश पर ,
हमें दे दो अभयदान ।
जैसे भी है अच्छे या बुरे मगर ,
है तो तेरी ही संतान ।
हम है मूर्ख और अज्ञानी मनुष्य ,
अपने गुनाहों से अंजान ।
भटक गए है सत्य पथ से तो ,
दे दो सत्कर्म का संज्ञान ।
तुम हमारे गुरु भी हो नाथ !,
दो मानवता का वरदान ।
शुद्ध चोले संग भेजा तुमने,
रखें उसका सम्मान ।
इस नश्वर जगत से विलग होकर ,
तुममें लगाएं ध्यान ।
इस जीवन के साथ और इसके बाद भी ,
तुम ही हो हरदम साथ कृपा निधान ।
तुम हो हमराज हमारे ,
हमारे सब राज जानते हो ।
तुम हो हम राही ,
दुख सुख में हम राह रहते हो ।
और तुम्हारी शान में क्या कहें ,
तुम ही हमारे सच्चे मित्र हो ,दया निधान !