अब हो ना हो
सारी ऋतुएं अकेले काट लीं।
किसी के साथ इन्हें देखने का मन,
शायद अब हो ना हो।
तू तो ज़रिया थी बस,
मेरी मोहब्बत को मुझसे जोड़ती हुई।
अब तो खुद से ही आशिकी है,
किसी और से मोहब्बत
शायद अब हो ना हो।
मोह नहीं किसी चीज़ का अब,
बिन शर्तों के तुझे चाह कर
तेरी चाहत महसूस कर ली।
इतनी अच्छी किस्मत कभी,
शायद अब हो ना हो।
सारे एहसासों को हिफाज़त से रखूंगा।
किसी से ऐसा राबता,
शायद अब हो ना हो।
– सिद्धांत शर्मा