( अब हैं आफ़त आई)
( अब हैं आफ़त आई)
मैं जिन्दा हूं मुझे जिन्दा ही रहने दो,
न करों मुझे शर्मिंदा अभिमान से जिन्दा रहने दो,।
महामारी की इस मार ने मारा,
जान बचने फिरा मारा मारा,।
घर जाने की इस आस ने मारा,
अपनों से मिलने की प्यास ने मारा,।
चल दिए घर को इस दिन रात ने मारा,
इस भूंख और प्यास ने मारा,।
देते राशन थोड़ा थोड़ा,
फोटो वीडियो की इस लाईट ने मारा,।
चले रास्ते भटक भटक कर,
पुलिस के डर इस मार ने मारा,।
मैं जिन्दा हूं मुझे जिन्दा ही रहने दो,
न करों मुझे शर्मिंदा अभिमान से जिन्दा रहने दो,।
बीमारी से मरा नहीं हूं,
लाॅकडाॅउन की इस मार ने मारा,।
भाषण दे गये ऐ भारे भारे,
राशन की इस आस ने मारा,।
बचने को तैयार था हर इंसान,
इस पांच सो रुपए की लाईन ने मारा,।
बाजारों की देख भीड़ अब,
मंहगाई के इस दौर ने मारा,।
खर्च करें पैसा मिले न सुविधाएं,
सुविधाओं की झूठी इस आस ने मारा,।
मैं जिन्दा हूं मुझे जिन्दा ही रहने दो,
न करों मुझे शर्मिंदा अभिमान से जिन्दा रहने दो,।
लेखक—Jayvind Singh Ngariya ji