अब सुनता कौन है
ईश्वर तेरे जगत के, बड़े निराले खेल।
खूब पनपता झूठ है, सूखे सच की बेल।।
सीख लिया रहना यहां, धारण कर के मौन।
सच के मीठे बोल को, अब सुनता है कौन।।
हुए अखबार की तरह, पढ़कर डाला फेक।
दुनिया ऐसी हो गई, कर्म भुलाते नेक।।
मुँह से मीठा बोलकर, दिल में रखते भेद।
ऐसे जन का त्याग कर, करो नहीं फिर खेद।।
कड़वी बोली बोलकर, जो जन देते घाव।
जीवन में उनसे कभी, होता नहीं लगाव।।