*अब सब दोस्त, गम छिपाने लगे हैं*
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अब सब दोस्त,गम छिपाने लगें है
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सब दोस्त अपना गम छिपाने लगें हैं।
हम सब को बेगाना,बताने लगे हैं।
तभी तो इतने दुख में भी जरूरत नही समझते गम बताने की,
क्योकि अब दिल की जगह,हमे बुध्दि से आजमाने लगे हैं।।1।।
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बात बात पर माहौल परेशान सा लगता है।
हँसी की बात करो,पर हर चेहरा हैरान सा लगता है।
क्योकि अब दिल मे माफी को जगह नही,
इसलिये सब रिस्ते,अब छुटकारा पाने को कसमसाने लगे हैं।।2।।
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निमंत्रण ,आवभगत करना अब मजबूरी सा लगता है।
साथ मे हाँ में हाँ मिलाना, अब जरूरी सा लगता है।
पता नही,कब कौन किस बात का क्या अर्थ निकाल दें,
इसलिये अब हर शब्द,नीरसता में फड़फड़ाने लगे हैं।।3।।
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गए दिन जब,मामा फुआ की याद सताती थी,
बार बार यादों में,दोस्तो की मस्ती, इठलाती थी।
अब तो समय गुजर गया,बिना चाय सांझा किये,
क्योकि,बाहर से तो मिलते है,पर भीतर से भाव,मुरझाने से लगे हैं।।4।।
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लौट आओ ,आ अब घर चले हम,
भूल कर सब गीले शिकवा,गले मिल चले हम।
क्या रखा है, इस दो दिन की जिंदगी को उदासीन बनाने में,
अब वही पुराने रिस्ते,पुराने दोस्त बुलाने लगे हैं।।5।।
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श्यामा