अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती
अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती
जितनी भी दिलकश हो महबूबा घमंडी सहि नही जाती
एक वक्त ऐसा भी तो आता है मुहब्बत में
आती हुई गर्मी और जाती हुई ठंडी सहि नही जाती
बहुत यकीन बाकी है सरकार पर अब भी मेरा
मगर आखिरकार अब तो ये मंदी सहि नही जाती
जरा सा झुकने से टूटने का डर बना रहता हो
बेकार है ऐसी बुलंदी सहि नही जाती
आजाद करो परिंदे को तुम अपनी कैद से
मुहब्बत में तनहा नजरबंदी सहि नही जाती