अब मुरारि शंख बजा दो
धरा बनी यह रणभूमि है
घर घर में संग्राम छिड़े
अब मुरारि शंख बजा दो
जन जन हैं अविराम लड़े ।
द्वंद्व मचा बंधु बंधु में
करते वे प्रतिद्वंद्व खड़े
नम भाव न दोनों में है
लड़ सदा ही स्वछंद पड़े ।
चक्र सुदर्शन घुमा तर्जनी
घृणा का संहार करो
छेड़ मधुर धुन मुरली की
नवल प्रेम संचार करो ।
मोर पंख सजा माथ पर
जग से सभी विवाद हरो
हो मिठास संबंधों में
मन ऐसे संवाद भरो ।
डॉ रीता सिंह