अब मुझे जाने दो !
अब मुझे जाने दो !
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समझ गया मैं….
मेरी कितनी जरूरत है तुझे !
अगर मैं ना रहूॅं इस दुनिया में ,
तो भी अच्छे से जीवन जी लेगी तू !
अब मुझे जाने दो !!
मुझे इस ज़िंदगी से कोई आस नहीं है !
अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं है !
मैं तो तेरी खुशियों की खातिर ही….
जीवन जीता आ रहा हूॅं !!
अब, जब मैं यह जान गया हूॅं ,
कि तू मेरे बिना भी खुशी-खुशी
अपनी ज़िंदगी जी सकती है !
संघर्ष करने की शक्ति आ गई है तुझमें ,
हर मोड़ पर, जीवन के उतार-चढ़ाव में ,
सही निर्णय लेकर, जीवन के इस लम्बे सफ़र में
सही रास्ते का चयन, बखूबी कर सकती है तू !!
घर की सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह ,
मेरी गैर – मौजूदगी में भी
भली-भाॅंति कर सकती है तू !
तो मुझे तुझपे बहुत ही गर्व हो रहा है !
मेरे दिल को काफ़ी सुकून मिल रहा है !
कि तुम अब तैयार हो गई हो….
जीवन की दुष्वारियों से लड़ने के लिए….
मुसीबतों का हॅंसकर सामना करने के लिए….
सफलता की सारी सीढ़ियाॅं चढ़ने के लिए….
जीवन में इक नया मुकाम पाने के लिए !
मेरे अधूरे सपने को पूरा करने के लिए !!
तो एक बार फिर से याद दिला दूॅं तुझे ,
कि जीवन के सार को अच्छी तरह समझ लेना !
जीवन के चार पल में कभी तू हॅंस लेना !
कभी ग़म के ऑंसू भी हॅंस के ही पी लेना !
ग़म को कभी खुद पे हावी ना होने देना !
वक्त से सामंजस्य बिठाते तू चलते जाना !
कर्त्तव्यपरायणता की मिसाल तू कायम करना !
सन्मार्ग पर चलकर मंज़िल तू हासिल कर लेना !
मेरे लिए कोई चिंता-फिक्र तू कदापि ना करना !
वैसे भी पहले ही बहुत देर हो चुकी है !
अब मुझे जाने दो ! अब मुझे जाने दो !!
अलविदा….
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण”
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 20-07-2021.
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