अब मुझको ही मुझसे डराते है ये सपने
कभी मेरी रूह से रूह काे छीनाते हैं ये सपने
कभी मेरी हसरताें काे जगाते हैं ये सपने
दिन में हँसी रातों में सताते हैं ये सपने
अब मुझको ही मुझसे डराते है ये सपने
कभी मेरे मन में समा जाते है ये सपने
कभी मेरी रूह काे तडपाते है ये सपने
कभी प्यार दिल में जगाते है ये सपने
अब मुझको ही मुझसे डराते है ये सपने
कभी उसकी मासूमियत की तरफ खींचते है ये सपने
कभी उनकी यादाें में डूबाे कर तडपाते है ये सपने
कभी मेरी आदतों काे दाेहराते है ये सपने
अब मुझको ही मुझसे डराते है ये सपने
कभी मंजिल तक पहुँचाते है ये सपने
कभी रास्ताें से गुमराह कर देते हैं ये सपने
कभी खुद टूट कर मेरी उम्मीदाें काे ताेड देते हैं ये सपने
अब मुझको ही मुझसे डराते है ये सपने