अब मन रोया
(अब मन रोया)
मैं भारत का वासी हूं,
मन मैरा ग़ुलाब हुआ,
देश विचारा महामारी से ग्रसित,
देश का बुरा अब हाल हुआ,
देख व्यवस्था नेताओं की,
मन मैरा बेहाल हुआ,
भाषाण देते बोलें जाते,
जनता का न उन्हें ख़्याल हुआ,
काम धंधे सब छुड़ा बैठा हैं,
जीवन यापन का न इसे ख़्याल हुआ,
न घर में पैसा न अब आटा हैं,
दाने दाने को मोहताज हुआ,
दान दान से पाया पैसा,
नेता अब माला माल हुआ,
दान का पैसा खाॅ गया सारा,
अमीरों का कर्जा माफ हुआ,
गरीबों का सामान सड़कों पर,
दारू ठेका खुलने को तत्काल हुआ,
उसको नहीं चिंता न देश की,
देश का अब क्या हाल हुआ,
ख़बर पहुंचे सच कैसे देश की,
मीडिया नेताओं का गुलाम हुआ,
कैसे होगी अब देश तरक्की,
ऐ सोच मन मैरा बेहाल हुआ,
मैं भारत का वासी हूं,
मन मैरा ग़ुलाब हुआ,
देश विचारा महामारी से ग्रसित,
देश का बुरा अब हाल हुआ,।।
लेखक—Jayvind Singh Ngariya ji