अब भाभी अलग चूल्हा जलाती है
न बच्चे शोर करते हैँ न मम्मी मुस्कुराती है
मै जब वर्दी मेँ होता हूँ तो दादी सिर झुकाती है
यही घर था जहाँ हरपल खुशी के फूल खिलते थे
यही घर है कि अब भाभी अलग चूल्हा जलाती है
न बच्चे शोर करते हैँ न मम्मी मुस्कुराती है
मै जब वर्दी मेँ होता हूँ तो दादी सिर झुकाती है
यही घर था जहाँ हरपल खुशी के फूल खिलते थे
यही घर है कि अब भाभी अलग चूल्हा जलाती है