अब बस…….
नहीं सुरक्षित घर आंगन ना सड़के ना गलियारे,
चहुँओर दरिंदे बैठे हैं सब अपने पांव पसारे,
नित दिन लूट रहे अस्मिता, लुप्त हो रही मानवता,
चीखें सुनकर मौन खड़े सब ऐसी क्या विवशता?
अब भी ना उबला तो समझो खून नही बस पानी है,
राष्ट्र विकास की तस्वीरें सब धुंधली ही रह जानी है,
पढे बेटियां, बढे बेटियां जैसे कोशिश जारी है,
घर – घर बेटी रहे सुरक्षित करनी यह तैयारी है,
कानून के लम्बे हाँथों से अपराधी अब ना बच पाए,
हर चीर हरन करने वाला फाँसी के तख्ते चढ जाए,
कदम उठाते ही ऐसा अपराध ये कम हो जाएगा,
इस तरह रोज़ मासूमों पर ना कोई हाथ बढ़ायेगा ,
कृष्ण से पहले राधा हैं जहाँ राम से पहले सीता,
नारी पुज्य है कहती है जिस देश की पावन गीता,
उस धरती पर अगर सुरक्षित नारी का सम्मान नहीं,
तो ‘देश’ भले हो सकता है, पर ‘भारत देश महान’ नहीं।