अब पहले जैसा बचपन कहाँ,
कविता,
अब कहाँ पहले जैसा बचपन,
कहाँ आ गये समझदारी के इस दौर में,
क्या खूबसूरत वो बचपन हमारा था,|
लड़ाई हो जाती थी दोस्तों से खेल में,
स्कूल में एक साथ रहना वो कितना प्यारा था,|
समय बदलता गया हम काबिल होते गये,
शाम को एक साथ बैठना वो कितना प्यारा था,|
अब उलझन हैं समय के इन आडाम बरो से,
वो पहले का बचपन कितना प्यारा था,|
गलियों में मिलती थी वो आवाज़ गाय बैल भैंसों की टन टन से,
कितना अच्छा माहोल वो गाँव का प्यारा था,|
बूढे़ बैठते थे कोढे़ और चौपाल पर,
हमारा वो कंचीयाँ खेलना कितना प्यारा था,|
डंडा लेकर माँ आती थी नहाने को ले जाने,
वो हमारा ठंड से ठुड्डी कपाना माँ के आँचल में छूप जाना कितना प्यारा था,|
जब जाते थे हम नानी के घर पर,
वहा के दोस्त बनाना कितना प्यारा था,|
खाने को मिलते थे कुछ पैसे और पकवान,
वो पहले का नानी का घर कितना प्यारा था,|
वापिस आते घर तो पूछें दोस्त ,
मामा के यहाँ पर कैसा हाल तुम्हारा था,|
कहाँ आ गये समझदारी के इस दौर में,
क्या खूबसूरत वो बचपन हमारा था,|
लेखक—Jayvind singh nagariya ji