अब ना हार मान तू ….।
अब ना हार मान तू ….।
उठ अब ना हार मान तू ,
जीत जिंदगी को जीत का श्रृंगार कर.।
हार भी जीत का इक पहलू है,
हार का ना तू तिरस्कार कर.।
भूल कर सब मायूसीयों को,
नयी उमंगों का संचार कर.।
मौत तो है एक छलावा.।
मौत की ना तू पूकार कर.।
लगा गले जिंदगी को,
जिंदगी से प्यार कर.।
देख खड़ी है जिंदगी तेरी,
कई मौके लिये तेरे द्वार पर.।
चढा बाजूओं को अपनी,
मौके को स्वीकार कर.।
उठ न अब हार मान तू ,
जीत का श्रृंगार कर.।
विनोद सिन्हा-“सुदामा”