अब नहीं
अब नहीं निवेदन आवेदन
स्वयं पर विश्वास का जुड़ें वेतन।
अब नहीं गिला शिकवा नफ़रत
बस अपनत्व की हो हकीकत।
अंदर बाहर ना चले द्वंद अंतर्द्वंद्व
हो हर्षित मन खुशी का आनंद।
अब ना आहट ना अकुलाहट
अपनी खुशी और हो अपने ठाठ।
अब ना ही प्रयास और साहस
मंत्र मुग्ध सीख और भरे उजास।
अब ना उपचार ना बांटू उपहार
दिलखुश रह हर दिन लगे त्योहार।
अब नहीं गम ना कुछ लगे कम
हर खुशियां पा सुनूं लूं सरगम।
मन नहीं करता हो हास परिहास
अपने आप में अब बनूं बिंदास।
अब ना कैसी भी अगर और मगर
प्रभा की किरण चलूं अपनी डगर।
अब ना खास अहसास मुलाकात
होती रहे अपने आप से ही बात।
अब नहीं कुछ अर्पण और समर्पण
शब्द कलम से होता रहे सरस चित्रण।
-सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान