–अब तो समझ जा रे इंसान —
धरती कितना भार सेहन करती है, उस का सीना तक चीर के इंसान न जाने क्या क्या उस के उप्पर खड़ा कर देता है…धरती जैसी सहनशीलता किसी के अंदर नहीं है..अगर इस धरती से पाप करने वाले काम हो जाएँ तो यह धरती को कितनी ख़ुशी होगी, यह इंसानों के चेहरे से ही पता चलने लग जाएगा।।कहीं पुल बन रहे हैं, कहीं नदी निकल रही है, कहीं लोग मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स बना रहे है, उस के बाद भी धरती सेहन करती है…धरती पर हो रहा पाप ही विनाश की तरफ ले जा रहा है इंसान को १ जिस की वजह से यह धरती भी दुखी होती है..इंसान को न जाने कब समझ आएगी, कब वो समझेगा। .शायद वक्त ही बताएगा , तब समझेगा। .
अजीत कुमार तलवार
मेरठ