अब तो तेरा यौवन ऐसा ढलने लगा है
अब तो तेरा यौवन ऐसा ढलने लगा है,
जैसे थका दिन शाम को ढलने लगा है।
रहता नही ताउम्र एक सा कभी यौवन,
बुढ़ापा आने पर ये भी ढलने लगा है।।
यौवन मजे लेता,बुढ़ापा हाथ मलता है,
वक्त निकल जाता आदमी हाथ मलता है।
ए बन्दे,तू इस वक्त की जरा कदर कर ले,
वरना तू चला जायेगा हाथ मलता मलता।।
समय के साथ इंसान का सिक्का चलता है,
समय ठीक हो तो खोटा सिक्का चलता है।
समय आने पर सभी अपना सिक्का चलाते है,
तभी आदमी ठोकर खाकर संभल कर चलता है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम