अब तो ख़िलाफ़े ज़ुल्म ज़ुबाँ खोलिये मियाँ
अब तो ख़िलाफ़े ज़ुल्म ज़ुबाँ खोलिये मियाँ
ये वक़्त बोलने का है कुछ बोलिये मियाँ
अब हो सके तो नींद से ग़फ़लत की जागिये
दिन चढ़ चुका है,आप बहुत सो लिये मियाँ
बदले में हम ने आपको क्या क्या नहीं दिया
अहसान हमने आपके जो – जो लिये मियाँ
यूँ ही बरस रहा है लहू , आसमान से
अब तो फ़िज़ा में ज़ह्र को मत घोलिए मियाँ
हम किस क़दर अजीब हैं ‘आसी’ ग़रीब लोग
ख़ुद आप रो लिये कभी, ख़ुश हो लिये मियाँ