— अब तक जीना न सीखा तूने —
??मेरी कलम से ??
कैसा है यह मंजर, कैसा है यह देश, कैसा है यह वृक्ष काट कर मजे लेना, आज कैसा है हर शहर का हाल…यही है मेरा आज का टोपिक…
धरती वही है, आकाश वही है, वही सूरज और चाँद वही है..
न हिंदुस्तान बदला, न यहाँ की हवा है बदली, अगर बदला है तो इंसान ने अपना रहने का , जीने का तरीका बदला है./
एक समय था..जब हम छोटे से होते थे..समझ कम होती थी..पर हमारे बुजुर्गों का बहुत बड़ा हाथ सर पर होता था…एक नीम का पेड़ होता था…एक पीपल का और बहुत बड़ा बरगद का भी होता था…घर कच्चे पक्के घर सब के होते थे…घड़े का (मटके) जल पीने को मिल जाता था..डाल कर चारपाई सब इन पेड़ों के नीचे सो जाया करते थे…क्या जिन्दगी थी..जब तक के माँ की गोद में सो जाया करते थे…कितने खेलते थे..हस्ते थे…बचपन कैसे गुजरा , वक्त का पता न चला…
और आज…जब इस उम्र में आये तो इसी धरती का नजारा ही बदल गया..सब को घर में, दफ्तर में, कार में…ऐ सी चाहिए, इस के बिं तो जैसे सब की जिन्दगी चलनी मुश्किल हो गयी..पीने को आर ओ का पानी चाहिए, सोने के लिए मखमल के बिस्तर चाहिए, रहने को आलिशान शीशेयुक्त मकान , महल..चाहिए, उस के बाद भी जिन्दगी .. जहन्नुम है..बिमारिओं से भरे पड़े हैं लोग, खूब खा लेते हैं, तब जिम जाते हैं ..खुद का फिगर ही किसी गद्दे से कम नही..ढोल नगाड़ा बने हुए हैं..डाक्टर के यहाँ दवा ऐसे ले लेकर खा रहे हैं, जैसे की वो एनर्जी का टोनिक दे रहा हो..कमाल कर के रख दी…जल्द से जल्द दुसरे शहर पहुँच जाऊं..हाई वे बना डाले…सारे के सारे ..हरे भरे पेड़ ऐसे उड़ा दिए, जैसे इन के बिना यह जी लेंगे…
क्यूं परेशां है रे तू ओ मानव..कलियुग में जिन हरे भरे वृक्षों का तूने क़त्ल किया है.उस का ही अंजाम भुगत रहा है..तेरी साँस घुट रही है..उस हरे पेड़ से कभी पुछा था..कभी उस को एक लोटा पानी का दिया था…उस को तो भगवान् ही पाल पोस रहा था..तेरे से तो अपना कल्याण न हुआ, पेड़ों का क्या कल्याण करता…तूने तो अपने भोग विलास में धरती को बंजर कर दिया…खोद डाला उस का सीना..गहराई तक जाकर भी ऊँची ऊँची इमारते बना डाली..तेरे सीने में एक पिन चुभ जाए तो चीखे निकल जाती हेई, धरती के सीने से कभी पुछा , की हे धरती माँ तेरे साथ इतना अत्याचार इंसान क्यूं कर रहा है..
मौत से घबरा गया है…मत घबरा मौत से..यह तो आनी ही है..जितने मर्जी प्रयास कर ले..जितने मर्जी सिलेंडर भर के रख ले..जहाँ तक रख सकता है..सारे के सारे भरे रह जायेंगे, और तू निकल जाएगा..सिलेंडर से जयादा तो खौफ्फ़ में मर रहा है..पैदा हुआ है..जाना ही है ..कोई घर वाला नही रोक सकेगा..मत कर मोह, मत उलझ इस माया के बंधन में…मेरा लिखा कड़वा जरुर होता है..पर होता सटीक है.
फिर भी कामना करूँगा, कि तेरा जीवन इंसान बचा रहे, अभी तेरी जीने की बहुत इच्छा बाकी है..फिर कहूँगा, भगवान् श्री कृष्ण जी के द्वारा बताया गया .””गीतासार” जरुर पढ़ लेना..जीवन सफल हो जाएगा..
अजीत कुमार तलवार
मेरठ