” अब जुड़ने-बिछुड़ने का गम कहाँ ? “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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आधुनिक यंत्रों ने मित्रता के रूप को ही बदल डाला ! मित्रता आपसी सहयोगिता ,विचारों की समानता ,प्रेम और अनुराग के समिश्रण से ही निखरती थी ! हम एक दूसरे को भली -भांति जानते थे ! खाली समय में उनके साथ खेलना ,गीत गाना ,मनोरंजन करना और पढ़ाई- लिखाई की बाते करना बड़ा अच्छा लगता था ! बात यह नहीं अच्छा लगता था आज भी अच्छा लगता है ! इर्द -गिर्द आज भी यह दोस्ती कायम है ! पर इन दोस्ती में हम जब कभी आपस में रूठ जाते थे तो हमें हमारे दोस्त हमें मनाते थे और फिर हम अपने गिले- शिकबे को भूल जाते थे ! बिछुडना तो बड़ा कष्ट दायक होता है ! आँखों से आँसू बहने लगते हैं ! हृदय फटने लगता है ! कुछ दिनों के बाद बिछुड़ने के जख्म भर जाते हैं पर प्यार नहीं कभी लुप्त होता है ! डिजिटल मित्रता में प्रायः -प्रायः इन भावनाओं का सदा आभाव ही रहा ! हम समान्यतः एक दूसरों को भली -भांति जानते नहीं ! कुछ लोग रहते हैं झुमरी तलैया और लिखते हैं दिल्ली ! अपने प्रोफ़ाइलों की पारदर्शिता को धूमिल बना रखा है ! बहुत कम लोग हैं जो एक दूसरे को भली- भांति जानते हैं फिर जुडने और बिछुड्ने का दर्द भला होगा कैसे ? किसी ने अनफ्रेंड कर दिया करने दो ! हमें क्या तुम नहीं तो कोई और सही ! सही में ” अब जुड़ने-बिछुड़ने का गम कहाँ ? ”
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत