अब चिट्ठियाँ नहीं आतीं
अब चिट्ठियाँ नहीं आतीं
सभागार दिमाग में विचारों की भांति खचाखच भरा हुआ है | चारों ओर छात्र-छात्राएँ गणवेश में घूम रहे हैं | आज डॉ रणविजय सिंह इंटर कालेज का वार्षिकोत्सव है जिसमे मेरिट में आये छात्रों को सम्मानित किया जायेगा. ग़जब का उत्साहपूर्ण वातावरण, वार्षिकोत्सव भी हमेशा की तरह बोर्ड परीक्षा समाप्त होने के बाद ही पड़ता है. छात्रों का उत्साह, परिणाम की धनात्मकता को उद्घाटित कर रहा है | शिक्षक, शिक्षिकाएँ, प्रिंसिपल सभी समारोह की भव्यता और सफलता के लिए खून पसीना एक किये हुए हैं, और करें भी क्यों न ? यू पी बोर्ड की हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में इस छोटे से कसबे से इस छोटे से इंटर कोलेज ने एक नहीं पांच सितारे दिए हैं. अंग्रेजी विषय में हिंदी विचारधारा के कस्बाई छात्रों ने शत प्रतिशत अंक लाकर स्कूल को प्रदेश की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर दिया है, और इसीलिए जिलाधिकारी ने जलसे में मुख्य अतिथि के रूप में पधारने की मंजूरी दे दी है. जिले के सभी आला अधिकारी सीडीओ, एसपी, सीएम्ओ, एडीएम्, डीआईओएस, और बीएसए आदि मौजूद रहेंगे. तेज तर्रार नई जिलाधिकारी की आहट ने प्रिंसपल डाक्टर राम बचन सिंह को और परेशान कर रखा है कि तैयारी में कहीं कोई कमी ना रह जाये. बैनर, पोस्टर, नेमप्लेट, मीडिया मनेजमेंट क्या क्या देखें ? बच्चों का नाश्ता, वीआईपी नाश्ता, रेड कारपेट, सांस्कृतिक दल की तैयारी, पुरस्कृत बच्चों की चेक, यूनीफोर्म, स्मृति चिन्ह, फ़ोटोग्राफ़र, मंच पर कूलर, बुके, माला, पोडियम अरे क्या क्या देखें डोक्टर रामबचन सिंह ? और वाइस प्रिंसिपल मिस मालती हैं कि अभी तक कौन सी साड़ी पहननी है, लिपस्टिक मैच नहीं कर रही है, साड़ी थोड़ी नीचे बांधनी चाहिए थी, फटी एडियाँ दिख रही हैं, इसी में उलझी हुई हैं. इस पूरी ऊहापोह में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है आज के कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री बी एन पाण्डेय जी उर्फ़ बब्बू पांडे को ससम्मान समय से सभागार में लाना और विधिवत उन्हें वापिस उनके निवास पर छोड़ना. इसीलिए यह जिम्मेदारी उन्होंने अपने विश्वसनीय ड्राइवर और जिम्मेदार हिंदी शिक्षक परताप मिसिर को दे रखी है, और पूर्ण निश्चिन्त हैं. कार्यक्रम का समय नजदीक है, तैयारियां अपनी गति पर हैं. डायस के पीछे वार्षिकोत्सव एवं छात्र सम्मन समारोह का बैनर लग गया है. सभागार फूलों से सजा दिया गया है, गुलाब की मालायें और भव्य बुके आ चुके हैं, लाइट-साउंड वाले ने माइक टेस्टिंग उद्घोषिका से करवा ली है. मंच पर पांच कुर्सियां हैं, मुख्य अतिथि, 2 विशिष्ट अतिथि, एक स्कूल प्रबंधक और एक आज के सम्मान समारोह के जनक श्री बब्बू पांडे की. सभी पाँचों सम्मानित अतिथियों की नेमप्लेट लगा दी गई है. कुर्सियों पर तौलिये हैं और आगे बिस्लेरी की पानी की बोतलें. मीडियाकर्मियों ने अपनी आरक्षित आगे की सीटें ले ली हैं. उद्घोषिका ने अनाउंसमेंट शुरू कर दी है—हमारी मुख्य अतिथि माननीय जिलाधिकारी महोदया कुछ ही क्षणों में पधारने वाली हैं. सीडीओ, एसपी, सीएम्ओ, एडीएम्, डीआईओएस, और बीएसए साहेब पहले ही आ चुके हैं और इसी बीच प्रताप मिसिर श्री बब्बू पांडे को लेकर सभागार में सम्मानपूर्वक प्रवेश करते हैं. बच्चों में उनके आने की खबर मात्र से ही ऊर्जा भर गई है, वे उत्साह और उत्सुकता में खड़े हो गए हैं और पांडे सर प्रणाम, गुरूजी चरण स्पर्श से पूरा सभागार गूंजने लगता है. सभी में होड़ है उनके पैर छूने की. उद्घोषिका लगातार घोषणा करती हैं, आप सभी शांत हो जाएँ, पांडे जी को रास्ता दें, कृपया उन्हें बैठने दें, अभी वो आप सभी से मुखातिब होंगे, आप के लिए ही वो आये है, आप के हर सवालों का जबाब देंगे. मेरा शिक्षकों से निवेदन है कि वे छात्रों को यथास्थान बैठाएँ ताकि कार्यक्रम में अव्यवस्था न हो, क्योंकि कुछ ही पलों में माननीया जिलाधिकारी महोदय सभागार में पधारने वाली हैं. शिक्षकों का प्रयास और अनुशाशन कामयाब होता है छात्र शांत मन से यथास्थान बैठ जाते हैं. बब्बू पांडे अपनी निर्धारित आरक्षित सीट की ओर बढ़ रहे हैं, सबसे आगे प्रताप मिसिर रास्ता बनाते चल रहे हैं, पांडे जी की पत्नी उनका दाहिना हाथ पकड़े हुए हैं, छोटा बेटा बायाँ हाथ पकड़े है. बब्बू पांडे लगभग 32 वर्ष के लम्बे, मोटे, थुलथुले, पेट बाहर को निकला हुआ, हाफ शर्ट और ट्राउसर में चमड़े की सैंडिल पहने हुए आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ रहे हैं. उनकी अँधेरी आँखों में सहस्त्रों दिवाकर चमक रहे हैं, धूप का चश्मा लगाए, ऊंचा खुला ललाट, दिव्य लाल गोल चेहरा, उन्नत नाक नक्श, क्लीन बनी हुई दाढ़ी, नुकीली करीने से कटी मूंछें. आज उसकी अंगुली पकड़कर चल रहे हैं, जिसे वो बचपन में चलना नहीं सिखा पाए. अपनी सीट पर बैठते हैं. सभागार शांत है, केवल उद्घोषिका की सुरीली आवाज, उसके कुछ सुनाये पुराने शेरो पर हलकी तालियाँ. माननीय मुख्य अतिथि पधार चुकी हैं दीप प्रज्ज्वलन में श्री बब्बू पांडे को भी मंच पर आमंत्रित किया गया है. मीडिया के कैमरे चमक रहे हैं, उद्घोषिका ने कोई मन्त्र पढ़ा है, इसके बाद सभी से निवेदन किया गया की वह राष्ट्रगान के लिए खड़े हो जाएँ. 52 सेकण्ड की राष्ट्रभक्ति संपन्न हुई. गणमान्य पाँचों अतिथियों ने डायस पर अपना अपना स्थान ले लिया है बीचोंबीच जिलाधिकारी उनके दोनों ओर पुलिस अधीक्षक और मुख्य विकास अधिकारी तथा दोनों किनारों पर स्कूल प्रबंधक और श्री बब्बू पांडे बैठे हुए हैं. उद्घोषिका बता रही हैं आज का दिन बहुत ही शुभ है हमारे स्कूल के पांच होनहार छात्रों ने पूरे उत्तर प्रदेश में यू पी बोर्ड के अंग्रेजी विषय में हाईस्कूल और इंटर में शत प्रतिशत अंक अर्थात 100/100 लाकर इस विद्यालय का नाम रौशन किया है, विद्यालय के यह रत्न हैं सुश्री गीतांजलि पासवान, श्री अबरार शेख और श्री शैशव पाठक हाईस्कूल में तथा श्री विभव यादव और सुश्री सुरभि मिश्रा इंटर में, और इस सबका श्रेय जाता है छात्रों के प्रिय, हम सबके चहेते आदरणीय श्री बब्बू पांडे जी को. पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगता है. श्री बब्बू पांडे जिन्होंने 5 साल पहले मस्तिष्क के आपरेसन के समय अपनी आँखों की ज्योति खो दी थी और पूर्ण अंधकार का जीवन जीने को अभिशप्त थे. मेडिकल साइंस ने जवाब दे दिया था, चारों तरफ था तो सिर्फ घना सन्नाटा, घोर अन्धकार और निराशा, अवसाद और तनाव. परन्तु कहते हैं न की नदी अपना रास्ता स्वयं बनाती है और मकड़ी अपना पथ स्वयं बुनती है, आत्मबल, संयम, धैर्य और साहस के बल पर इंसान क्या नहीं कर सकता, श्री पांडे जी भी तनाव और अवसाद से धीरे धीरे उबरने लगे और इसमें मदद की उनके फौजी फौलादी पिता ने. हर पल संबल बनकर उनके आत्मबल को पोषित किया. आप सबको बताते चले कि पांडे सर अच्छे स्कालर थे, आपने स्पोर्ट्स कालेज ग्वालियर से स्नातक किया है. अंग्रेजी शुरू से ही उनका प्रिय विषय रहा था, बस इसी अंग्रेजी को उनहोंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और प्रतिज्ञा की कि जैसे भी हो वे स्थानीय छात्रों में जो अंग्रेजी को लेकर डर समाया है उसे उखाड़ फेकेंगे. यह बीड़ा उठाना आसान न था और आज उसी का प्रतिफल है कि उनके पढाये ये पाँचों हीरे पूरे यू पी में अपनी चमक बिखेर रहे हैं. पाँचों बच्चों को पुरस्कार और सम्मान देने के बाद जब बब्बू पांडे के नाम की घोषणा हुई कि मुख्य अतिथि स्वयं उन्हें सम्मानित करेंगी तो पांडे जी की सूखी आँखों में सागर हिलोरें मारने लगा | तमाम तालियों की गड़गड़ाहट और चमकते कैमरों के फ्लैश के बीच उन्हें जिलाधिकारी महोदय ने अंगवस्त्र पहनाये. प्रबंधक स्कूल ने बड़ा सा स्मृति चिन्ह प्रदान किया और फिर उन्हें सभा को संबोधित करने के लिए बुलाया गया. इन सारी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए पांडे जी अत्यंत भावुक हो चुके थे. उम्मीद से ज्यादा मान सम्मान कभी कभी दिल के आँचल में नहीं समाता और वह आँखों से छलकने लगता है. पहली बार वे इतनी बड़ी और विराट सभा को मंच से सम्बोधित कर रहे थे. हाथ से माइक को पकड़ा और कुछ देर मौन रहे. सभाकक्ष में घोर चुप्पी, मन में विचारों की अधिकता हो या भावों की प्रधानता दोनों अवसरों पर ही वाणी मौन हो जाती है शब्द साथ नहीं देते. वो लगभग फफक कर रो पड़े, गला रुंध आया था, पाँचों पुरस्कृत बच्चों को उनकी अथक मेहनत की बधाई दी, उपस्थिति सभी छात्रों को आशीर्वाद दिया, हर छात्र के लिए उनके घर के और दिल के दरवाजे हमेंशा खुले हैं, स्कूल प्रबंधन और अधिकारीयों को धन्यवाद दिया और उनका आभार प्रकट किया. वे इस अवसर पर उस अनाम रजिस्ट्री का जिक्र करना चाहते थे, जिसे वो साथ लाये थे, जिसने उन्हें नवजीवन प्रदान किया था, जिसने नैराश्य की धरती में आशाओं का बीजारोपण किया था, लक्ष्यहीन अंतस को दायित्वबोध कराया था, जिसने मृतप्राय आत्मा में विश्वास फूंका था, परन्तु … वे इतने अधीर हो चुके थे की उन्होंने जयहिंद किया और माइक से हट गए. भावना सम्मान का आलिंगन कर रही थी, मौन का लावा इन्द्रियों से बह रहा था, एकबार पुनः सभागार तालियों से गुंजायमान हो गया. गणमान्य अतिथियों ने भी अपने भाषणों की औपचारिकता पूरी की. सभी के वक्तव्यों का केंद्र बिंदु पांडे जी बने रहे. सभा सफलतापूर्वक संपन्न हो चुकी थी. पत्नी, बेटा, प्रताप मिसिर सभी उल्लसित थे, सबके चेहरे पर इस बात का तेज था कि वह बब्बू पांडे जैसे व्यक्तित्व से किसी न किसी बहाने जुड़े हुए हैं. वर्षों की पीड़ा को सम्मान ने सहला दिया था. आज आत्मबल ने भाग्य को पटखनी दी थी |
बारिश होकर निकल चुकी थी, आकाश साफ़ था, कहीं-कहीं थोड़े कजरारे बादलों की टुकड़ी भागी जा रही थी, दरवाजे पर बाध की खटिया डाले नीम के पेड़ के नीचे बब्बू पांडे गिरती निमकौरी को उठाते उसे छीलते, सूंघते फिर खटिया के नीचे फेंक देते. मध्यम-मध्यम बयार चल रही थी, अहीरटोला की एक बकरी उनके पायताने गिरे नीम के पत्ते को खाती फिर इनका अंगूठा चाटती. विराट आकाश में पांडे पता नहीं कहाँ अटके हुए से खुली आँखों अन्धकार पी रहे थे. कुंए पर बाल्टी खटकी, कोई अधेड़ स्त्री शायद पानी भर रही थी, लगातार भुनभुना रही थी लगता था उसकी पतोहू ने उसके भी पानी भर रखा है. इतने में दो छोटे बच्चे टायर चलाते हुए खटिया हिलाने लगे, पांडे काका, पांडे काका सरवन हमार गुल्ली छीन लिए हैं औ अब नाही देत हैं. पांडे की तन्द्रा टूटी खटिया से उठे दोनों में समझौता कराया, थोड़ी देर बैठे रहे फिर लेट गए. शाम तेजी से ढलने लगी थी, बगल के पाकर के पेड़ पर परिंदे बसेरा लेने के लिए झुण्ड के झुण्ड चहचहाने लगे थे. पांडे के विचारों की श्रृंखला जुड़ गई, सभागार का शोर और जीवन की चुप्पी आपस में गुत्थमगुत्था हो रही थी. वे शोर के मौन में भीग रहे थे, उनका अतीत चलचित्र की भांति मानस पटल पर उभरने लगा –वो बहुत खुशनुमा दिन थे, ममता और मैं अब तक दो बच्चों के पेरेंट्स बन गए थे. ममता की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं मै उसे लेकर दिल्ली आ गया था. मैं दिल्ली एअरपोर्ट पर परिसर की दुकानों की देखरेख करने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सहायक मैनेजर था, अच्छा पैकेज, गाड़ी, और पास में ही फ्लैट. दिल्ली जैसी महानगरी में और क्या चाहिए ? जीवन मजे से चल रहा था. ममता, मेरी अर्धांगिनी, मेरी सहचरी, उसे कितनी बार समझाया कि ये शिक्षा मित्र की नौकरी छोडो यार, साथ रहेंगे, लाइफ को एन्जॉय करेंगे, सब कुछ तो है अब हमारे पास, भगवान की दया से पैसे की भी कोई कमी नहीं है, बस्स.. मैं दिल्ली में और तुम, तुम ५०० किलोमीटर दूर वहाँ गाँव में ढाई हज़ार की नौकरी कर रही हो. ढाई हज़ार में दाई मिल जाएगी बच्चों को संभाल लेगी, तुम यहाँ भी स्कूल में पढ़ा सकती हो, लेकिन नहीं उसे आशा थी की वह एक न एक दिन परमानेंट टीचर हो जाएगी और फिर उसे मेरी प्राइवेट नौकरी पर भरोसा ही नहीं था, उफ्फ्फ… इसी खींचातानी में दो बेटों का बाप बन गया.
वो गर्मी के दिन थे मुझे अच्छी तरह से याद है वो मनहूस दिन. मैंने एअरपोर्ट पर गाँव से लौटकर ज्वाइन किया था, कुछ काम पेंडिंग थे, मैं उन्हें तेजी से निपटा रहा था की मुझे सर में तेजी से दर्द शुरू हुआ लगा अभी उलटी हो जाएगी, पूरा शरीर पसीने से भीग गया, मुझे चक्कर से आ रहे थे, फिर थोड़ी देर में धीरे धीरे आराम मिल गया. लेकिन यह क्या थोड़ी ही देर में इस बार उससे भी भयंकर दर्द उठा और मैं एकदम से फर्श पर लुढ़क गया, पसीने से तर बतर, दोस्तों ने लोकल डाक्टर को दिखाया तब तक कुछ तबीयत को आराम होने लगा था परन्तु डाक्टर ने चेताया कि आप किसी बड़े अस्पताल में तुरंत जाकर जाँच करवा लें. मैंने उसकी बात को हलके में लिया सोचा थकान है घर पर आराम कर लूँगा ठीक हो जायेगा, दोस्तों ने घर छोड़ दिया, मैंने ममता को ज्यादा नहीं बताया बस कहा मै आराम करने जा रहा हूँ मुझे बिलकुल भी मत जगाना. लेकिन जब रात हो गई और मै नहीं उठा तो ममता ने जगाना शुरू किया लेकिन सब कहते हैं की मैं तो नीम बेहोशी में था | और …. फिर…फिर एकदौर शुरू हुआ अस्पतालों का जो अभी तक चल रहा है, बताते हैं मुझे एम्स में भर्ती कराया गया, गाँव से पापा आ गए थे और सब कुछ उन्होंने संभाल लिया था, मेरे दिमाग का आपरेसन किया गया, खोपड़ी का एक हिस्सा मेरे पेट में महीनों रखा रहा, मै महीनों कोमा में रहा, और जब होश आया तो मैं इस सुन्दर दुनिया को देखने की क्षमता खो बैठा था, मेरे चारों तरफ घना अन्धकार, इतनी गहन कालिमा, इतना घुप्प अँधेरा, मैं बिलखता, चिल्लाता, रोता, रोशनी की एक छोटी सी किरण के लिए छटपटाता, मन बूँद बूँद रिसता रहता. इलाजों का दौर, देश के हर कोने को पापा के पैरों ने नाप डाला कोई डाक्टर, बैद्य, हकीम, तांत्रिक, ज्योतिषी, मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गंडा, तावीज, दुआ, होम्योपैथी, एलोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी कुछ नहीं छोड़ा पापा ने सिर्फ मेरी एक रौशनी की किरण के लिए. मै दैनिक क्रियाएं भी नहीं कर पाता, लेटे लेटे लगातार खाने से मेरा वजन तेजी से बढ़ने लगा. नात-बात, रिश्तेदार, यार दोस्त, गाँव, घर के लोग आते थे, औपचारिकता निभाते, एक दुसरे के कान में ममता और मेरे बच्चों को लेकर फुसफुसाते, कोई थोड़ी सांत्वना तो कोई निराशा बांटकर चला जाता. परेशानी और दर्द में रिश्तों को आंव पड़ने लगती है, वे कमज़ोर और दुबले हो जाते हैं. परन्तु वो पापा थे जो इस लड़ाई में फौजी की तरह ही डटे रहे. देश के जाने माने न्यूरो स्पेशलिस्ट ने हार मान ली थी, मेरा दुनिया को फिर से देख पाना असंभव था, जबतक की कोई चमत्कार न हो जाये और एक पापा और उनका धैर्य है की उन्हें आज तक चमत्कार का इंतज़ार है. इस बीमारी ने सब कुछ समेट लिया, हम आर्थिक रूप से टूट गए बस पापा की पेंसन और ममता की सैलरी से घर चल रहा है. जीवन में निराशा, अवसाद, तनाव, हीनता, दुहस्वप्न के अलावा कुछ नहीं बचा, न मै ममता को देख पा रहा था न ही बढ़ते हुए बच्चे को. ममता के अंतर्मन में घुमड़ती पीड़ा का एहसास कर मै अपने आप से नफरत करने लगा था. कई बार मन में आया की पूरे परिवार के दुःख का कारण मै ही हूँ. न मै रहूँगा न दुःख का कारण रहेगा, थोड़े दिन लोग रो चिल्ला लेंगे. लेकिन हर बार जब मै ऐसी कोई बात करने लगता तो वो एकदम मास्टरनी बनकर मुझे समझाती. कितना संयम, समझ, विवेक और जिम्मेदार हो गई है. मुसीबतें व्यक्ति को कितना मजबूत कर देती हैं, मात्र पढता था, अब सब जी रहा हूँ. माँ मेरे दुःख में सूखकर ढांचा हो चुकी थी, असह्य पीड़ा असमय बूढा कर देती है. ममता घर में माँ का हाथ बटाती, मेरे सारे दैनिक क्रिया कलाप कराती, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती और फिर स्वयं स्कूल जाती. इश्वर इतनी भी व्यस्तता किसी स्त्री को न दे.
कहते हैं सारी सुरंगे जब बंद हो जाती हैं तो रौशनी की कोई किरण अवश्य दिखती है धीरे धीरे मेरी अन्य इन्द्रियों का सेन्स इतना विकसित हो गया की मै लगभग न देख पाने की कमी को भूलने लगा. मैं दिन भर पड़ा रहता, खाता, वजन बढाता, पापा एक्सरसाइज के लिए कहते तो बहाने बनाता. मुझे लगता जिंदगी कुछ ही दिनों की है, मैं ऐसे ही मोटाते मोटाते एक दिन दग जाऊंगा, सारी परिस्थितियां मेरे विपरीत, दवाओं- दुआओं से कोई उम्मीद नहीं बची थी, मैं घोर अवसाद में था, बहुत ही बुरे दिन थे, कोई मिलने आता कुछ भी पूछता मैं रोने लगता, मै पहले की खुशहाल जिंदगी से तुलना करता और परेशानियों को और बढ़ा लेता. एक हताश, निराश, परेशान, हीनभावना से ग्रस्त आदमी जीवन से मुक्ति मांगने लगता है. सारे प्रवचन, उक्तियाँ, किताबें, लगता धर्म की उल्टियां हैं, जिन्हें हमें चखाया जा रहा है. सहसा एक चींटी ने जिसे गाँव में सुरुहुटी कहते है ने बड़े जोर से खुले पेट पर काट लिया था. पांडे की तन्द्रा भंग हुई, लाल चकत्ता पड़ गया था, उन्होंने बच्चे को आवाज लगाई, जरा खटाई लाना रगड़ने के लिए. जैसे अजगर अपने शिकार को धीरे धीरे निगलता है, रात्रि भी शाम को निगलने लगी थी.
वो चार साल पुरानी शाम भी बिलकुल आजके जैसी ही थी जब किशुन डाकिया ने एक रजिष्ट्री पकड़ाई थी. क्या होगा इसमें कौतूहल वश खोल कर देखा लेकिन तब तक खाने का बुलौआ आ गया और मैंने भोजन को प्राथमिकता दी. रात्रि को ममता ने ओसारे में लालटेन की रौशनी में अँधेरे का भाग्य बांचना शुरू किया…
प्रिय बब्बू,
जीवित रहो,
यह आशीष इसलिए कि आजकल आप जो कर रहे हो, यानी खाना, सोना, हगना और सांस लेना यह पूरी तरह से मुर्दानगी है. यदि मेरी यह बात अच्छी लगी हो तो वाकई आप जिन्दा नहीं बल्कि एक चलती फिरती लाश हो और अगर बात चुभी, बुरी लगी है तो यकीन मानिए आशाओं की बहुत सारी रश्मियाँ तुम्हारे अन्तःकरण में टिमटिमा रही हैं. तुम अत्यंत सौभाग्यशाली हो जो ऐसी सुशील, सच्चरित्र, धैर्यवान सहचरी है, सौभाग्यशाली हो पहाड़ जैसा विराट व्यक्तित्व वाला साहसी पिता पाकर. सारी परिस्थितियां तुम्हारे अनुकूल हैं सिवाय तुम्हें छोड़कर. अच्छा छोडो, चलो तुम्हें गोपालदास नीरज की एक पंक्ति देता हूँ, शायद लहू में हलचल हो, क्योंकि जिन्दा वही होते हैं जिनके विचारों में स्पंदन शेष हो. सुनो – ”छुप छुप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है…
चित्रकूट के स्वामी भद्राचार्य को जानते होंगे, अरे सूरदास, प्रख्यात कवी मिल्टन को तो जानते ही होंगे इनके पास तो जीवन के प्रथम दिन से ही रौशनी नहीं थी तुमने तो रौशनी और अंधकार दोनों को देखा है, अंतर कर सकते हो. इनके खाते में तो सिर्फ अन्धकार आया था लेकिन उनका आत्मविश्वास उन्हें कहाँ ले गया, दुनिया में प्रख्यात हुए. तुम्हारे पास तो संसाधन हैं, पत्नी है, बेटे हैं, माँ है, भाई है और पिता हैं. जानते हो बब्बू पिता का ना होना बच्चे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है, लेकिन तुम्हारे जैसा पिता होना भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं. अपने लिए नहीं अपनी संतति की खातिर तुम्हे अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत करना होगा. उठो अर्जुन की तरह गांडीव रखकर बैठे बब्बू पांडे, उठो जीवन की खूबसूरती तुम्हारा आलिंगन करना चाहती है, मात्र दृष्टि चले जाने से दुनिया नहीं रूकती, लेकिन हाँ दुनिया रुक जाती है जब मन की दृष्टि, अंतःकरण की दृष्टि चली जाती है. इस अंतःकरण की दृष्टि में आत्मबल, आत्मविश्वास की तेल-बाती करनी होगी सिर्फ तुम्हें. लोग मदद कर सकते हैं लेकिन चलना तुम्हे ही होगा. मै अच्छी तरह जानता हूँ तुम वही हो जिसने बचपन से लेकर कार्यरत होने तक अपने हिस्से की जीत स्वयं रची है, हाँ बब्बू, तुम वही हो जिसने जनई के तलाब का पानी विशाखापत्तनम के समुद्र तक पहुंचा कर श्रमदेव का अभिषेक किया था, उस अन्दर के महारथी को आवाज़ दो, वह तुम्हारे साहस का गुलाम है, सब करेगा बस तुम्हे आदेश देते रहना है. यह दुनिया उसी का सम्मान करती है जो दाता है, जिसके पास कुछ भी है देने के लिए, लेने वालों, मांगने वालों को सदैव तिरस्कृत किया जाता रहा है, यही वर्षों से होता चला आ रहा है और यही प्राकृतिक सत्य भी है, सोचते हो तुम कि किसी को क्या दे सकते हो ? तो सुनो.. जो तुम्हारे पास है वह इस चौहद्दी में दूर दूर तक किसी के पास नहीं है, बस तुम्हे खबर नहीं है, तुम्हारे पास है अंगरेजी भाषाज्ञान का खजाना, अंग्रेजी शब्दों का अकूत भण्डार. आज से, बल्कि अभी से अपनी चौपाल से ही इसे निःशुल्क अथवा सशुल्क बाँटना शुरू करो, तुम्हे जीने का लक्ष्य मिलेगा और बच्चों को अंगरेजी का ज्ञान. सुनो ! यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ और पवित्र लेन-देन होगा | इस ज्ञान को बाँटने के लिए सिर्फ बोलने और सुनने की ही आवश्यकता है, गुरुकुलों को याद करिए जब लिपियों का आविष्कार नहीं था, क्या शिक्षा नहीं थी ? इससे बेहतर थी. लिखने पढने का मन ललचाय तो ब्रेल सीखी जा सकती है, और फिर आप दुनिया के महानतम साहित्य से जुड़ जायेंगे. जीवन तुम्हारा है, तुम बच्चों के सौभाग्यशाली बाप बनते हो या दुर्भाग्यशाली यह फैसला तुम पर छोड़ता हूँ.
तुम्हारा शुभेच्छु
बब्बू पांडे को उस अनाम शुभचिंतक की अब भी तलाश है, वह उससे मिलना चाहते हैं, वह उसे बताना चाहते हैं, वह आज के अख़बारों की कटिंग दिखाना चाहते हैं, उसकी छाती से फूट फूटकर रोना चाहते हैं, जिसने उनके मन मस्तिष्क पर अंकित कर दिया है “इक सपने के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है…
प्रदीप तिवारी
15-07-17