अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही
अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही के ज़मीं आसमां से हम
ना सोच कि ‘नीलम’ नामा-ओ-पैग़ाम से छूटे
देख तुझमें ही तो छूटे हैं यहाँ से वहाँ तक हम
नीलम शर्मा ✍️
नामा-ओ-पैग़ाम-पत्रों का आदान प्रदान