अब कैसे जियूं
अब कैसे जियूं
मेरी जिंदगी मेरे प्यार से जुदा होकर अब कैसे जियूं लगता
है घूंट ये जहर का अब कैसे पियूं
आती है पल पल याद उसकी ना रह पाई
एक घड़ी भी बिन उसके जख्म ये दिल के अब कैसे सियूं
छीन लिया जमाने ने मुझे उससे शरीर से रूह अलग हो गई
जैसे हाल ए दिल का किस किस से कहूं
काश लौटा सके कोई मेरा प्यार मेरा संसार मुझे
दर्द ये जुदाई का अब कैसे सहूं
मेरे प्यार से जुदा हो के अब कैसे जियूं ||
‘कविता चौहान’