अब कुछ उम्मीदों का टूट जाना जरूरी है
अब कुछ उम्मीदों का टूट जाना जरूरी है
गम हो भले फिर भी मुस्कुराना जरूरी है |
दोस्ती के बंधन में बांधते हो तुम अगर
एक बार तुमको भी आजमाना जरूरी है |
खिला हो फूल भले दिन में रोशन सा
एक बार उसका भी मुरझाना जरूरी है |
चाहे दोस्त काबिल हो या ना हो काबिल
एक बार तो उसको भी निभाना जरूरी है
जीतना भी जरूरी है हारना भी जरूरी है
मोन भी जरूरी है दहाड़ना भी जरूरी है |
कवि दीपक सरल