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29 Dec 2018 · 2 min read

अब और नहीं

शीर्षक – अब और नहीं
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शादी की चालीसवी सालगिरह पर नेहा और सौरभ बहुत खुश नजर आ रहे थे। सुबह से ही नेहा रसोईघर में सौरभ के मन पसंद व्यंजन बनाने में लगी हुई थी और सौरभ अपने छोटे से घर को सजाने में… एक दो मेहमान भी आने वाले थे, सो दोनों को जल्दी थी अपने काम निबटाने की…

बीच बीच में सौरभ नेहा का भी हाथ बटा देता… तो नेहा कहती- ‘इस उमर में काम करते हुए अच्छे नही लगते, मै कर लूँगी’

‘अरे तू भी तो बुढिया हो गई है तू कर सकती है तो मैं क्यों नहीं’- दोनों खिलखिला कर हँस पड़ते ….. I

‘ सुनो तुम मुझे क्या दोगी आज उपहार में ‘

‘ वही चालीस साल पुराना वचन…जीना है तो सिर्फ तेरी खुशी के लिए तू जो कहे वही सही बाकी सब गलत….. और तुम क्या दे रहे हो मुझे ”

‘ चालीस साल पहले दिए गए वचन से आजादी…. अब तुम्हें अपने लिए जीना होगा… तुमने बहुत कुछ समर्पित किया है मेरे लिए, बच्चो के लिए, अब और नही….”

सौरभ, नेहा का हाथ पकड़कर कमरे की ओर ले आया ….. “ये रही तुम्हारी जिंदगी जिसे बरसों पहले हम सब पर कुर्बान कर दिया था तुमने …. ”

सामने रखे रंग, ब्रश, केनवास को देख कर नेहा की आंखें फटी की फटी रह गई, सचमुच उसके सामने उसकी जिंदगी थी, जिसे उसने कभी पढ़ाई के लिए, कभी ससुराल के लिए, कभी पति ओर बच्चो के लिए समर्पित कर दिया था l
‘क्या हुआ मैडम ? ‘-
‘कुछ नही तुमने तो मुझे ये सब देकर खरीद ही लिया, ये सब देख कर मुझे लगने लगा है कि मैं भी अपने लिए जी सकूंगी….’
थैंक्यू सौरभ, थैंक्यू ……” – . कहते हुए नेहा सौरभ के हृदय में समा गई l

राघव दुबे
इटावा (उ0प्र0)
8439401034

Language: Hindi
529 Views
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