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21 Dec 2018 · 1 min read

अब उन्हें डरना होगा !

खोने और पाने का भय,
हम ही क्यों पाले,
क्यों हर वक्त हम ही इस डर में जीये,
कि हमारा सब छिन जायेगा,
वो जो हमारे ऊपर बैठे हैं,
जिन्हें हम ने चुना, ऊँचा स्थान दिया,
राज भोगने के साधन उपलब्ध करवाए,
वो भी डरे, डर का मर्म समझें,
हम तो पानी है,
शरीर से निकले तो पसीना
आँखों से निकले तो आँसू
और अगर सीमाएं तोड़ दे, तो प्रलय,
और प्रलय कि प्रचंडता से तो सृष्टि डरती है,
वो तो फिर भी?
और अब हम प्रचंड होंगे,
पाँचवे साल में,
कश्मीर से कन्या कुमारी तक
उठेगी प्रलय कि प्रचंड वेग,
सभी जुमले उस में तैरते नज़र आएंगे,
प्रलय कि एक खासियत भी है
अपने बेगमय धारा में बांध के ले जाती है,
कूड़ा-कचरा को और अपने पीछे
उर्वरक के साधन छोड़ जाती है ।
अब हम क्यों डरे ?
हम हारे हुए लोग मजबूत होते हैं ,
हम अपने हिस्से का हार चुके,
अब कुछ नहीं जिस के छिन जाने से डरे,
अब खून लगे मूहों को हारना है ,
अब भेड़िए को बस्ती छोड़ना होगा,
अब उन्हें डरना होगा !
***
21 – 12 – 2018
मुग्धा सिद्धार्थ

Language: Hindi
3 Likes · 264 Views
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